hindisamay head


अ+ अ-

कविता

फिर से असमर्थ

रेखा चमोली


शिकायतें तो आएँगी ही
जब-जब जाना चाहेगा कोई
लकीर से बाहर
हटाना चाहेगा
पर्दों को
पलटकर देना चाहेगा
तीखी प्रतिक्रियाएँ
व्यवस्था के पोषकों को
नहीं होगा सहन
कोई तोड़ कर चहारदीवारी
साँस ले खुले में
महीन मकड़ी के
जाले से बुने
दबावों को करे महसूस
पर हर बार की तरह
इस बार भी
रह जाएँगी उँगलियाँ
लिजलिजे-चिपचिपे
धागों में उलझी हुई
असमर्थ हो जाएँगे हाथ
रोकने को
गले में बढ़ता जाएगा
जाले का कसाव।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में रेखा चमोली की रचनाएँ